मरते-मरते रही बस यही आरज़ू, अपनी जां को मैं वतन पे वार दूं। रगों में बहते एक एक बूंद की कसम, आज सैनिक होने का मैं कर्ज उतार दूं...
दिल पे उसकी यादों का कहर बरपा रहा मेरा प्यार एक तरफा था एक तरफा रहा! निगाह भरके देखना भी नसीब न रहा उसे ताउम्र उसकी राहों से मैं यूं ही गुजर...
विवाहिता का सामाजिक डर . . . समाजिक डर के कारण एक विवाहिता किसी को बार बार "भैया" बोलती है। क्या आप जानते हैं कि उसने अपने भाई को ...
उसकी यादों को इस दिल से मिटाने में वक्त लगेगा, दिल को पत्थर बनाने में कौन अब मोहब्बत करेगा, इस जहां में बे-वाफाओं की तादाद बढ़ी है जमा...
फिर मौसम सुहाना न रहा जब वो मिरे पास यहां न रहा हर तरफ बेबसी का आलम है मोहब्बत लायक ये समा न रहा! कैसे, क्यूं रह लेते दिल में उसके ...
जाना, फ़ुर्सत तुम्हें न थी पास आने की ज़िद हम भी कर चुके थे दूर जाने की! हमने मस्जिदों में सजदे किए तेरे वास्ते तुमने कोशिश ही नहीं की ह...
जो पास हो उसी में बसर किया करो सस्ती चीजों की भी कदर किया करो मुसीबतों को देखके रस्ते नहीं बदलते कभी तूफानों में भी सफ़र किया करो! ह...
एक घंटा . . . (प्लेटफॉर्म पर रुकी ट्रेन) अचानक एक सी...सी.....सी..आवाज के साथ ट्रेन रुकती है किसी स्टेशन पर, अफसोस अभी हमें इस स्टेशन का...
डूबकर तेरी इन आंखों में अब मैं मरना चाहता हूं, ये काम कल नहीं आज,अभी मैं करना चाहता हूं! भले ही दिनों से तुमको देखा नहीं है एक बार भी ...
जगमगा जाये जग सारा लेकिन . . . जगमगा जाये जग सारा लेकिन नूर नहीं था, बुलाने जाते लेकिन उसका घर दूर नहीं था! मैंने कितनी बार पुकारा उस ...
यहां पत्थर सा दिल लिए बैठे हो सुना है मेरा कतिल़ लिए बैठे हो! तेरी गुस्ताखियां हम कब का भूल गए तुम मेरी कल की वो बात लिए बैठे हो! जो हो ग...
नेतागिरी . . . नेता जी आज सुबह सुबह झोला लिए अपनी टूटी खचाडा साइकिल में चल दिए, नेता जी कहां चले, " (ऊंचे स्वर में) बस बेटा शहर जा ...
दरिंदगी की सारी हदें पार, कब तक सहेंगे अत्याचार, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, यह नारा हुआ शर्मसार। आंखों में नमी नहीं आग लाना है, हर बलात...
जो तुम रोज़ पूछते हो उस सवाल सा हूं, जो तुम तन्हा सोंचते हो उस ख़याल सा हूं, कभी अपनी बाहों में भरकर तो देखो, ख़ुदा से शिकवा करोगे उस म...
तुम मुझे अब प्यार कर सकते हो! तुम मुझे अब प्यार कर सकते हो ये आंखें अब चार कर सकते हो! तुम अपनी इन्हीं अदाओं से ही, मुझे वहीं से बेकरार कर स...
जब नहीं मिटा पाया उसका नाम! जब नहीं मिटा पाया उसका नाम मैंने अपना ये हाथ जला लिया! और जब नहीं मिला कोई अपना, मैंने ये हाथ खुद से मिला लिया!...
शीर्षक- फिर गांव याद आया ! रेलगाड़ी से उतरते ही मैंने स्टेशन देखा। काफी कुछ बदल चुका है यहां,, वहां पर पहले एक चाय की दुकान थी, लेकिन ...
जगत की बेरंग जिंदगी . . . शाम का सूरज ढलते ही सड़कों की चहल-पहल खत्म हुई। चिड़ियां अपने अपने बसेरे की ओर जाती हुई दिख रही हैं। आज रा...
पूरा हिंदुस्तां गूंज उठा था जय इंकलाब के नारों से। हर कोई ऊब चुका था अंग्रजों के अत्याचारों से। वीर जवान आजादी के लिए हंसते हंसते फंदे पर...
न मैं हिन्दू न मैं मुस्लिम, न हूं सिख ईसाई, इंसान हूं बस इंसान ही मानो और कहो तुम भाई। धर्म और जाति ने, भेद किया इंसानो में, क्य...