नेतागिरी . . .

नेता जी आज सुबह सुबह झोला लिए अपनी टूटी खचाडा साइकिल में चल दिए,
नेता जी कहां चले, " (ऊंचे स्वर में) बस बेटा शहर जा रहे हैं आज नामांकन करवाना है और हम चुनाव लड़ रहे हैं विधायकी का।
अच्छा, तो आप भी किस्मत आजमा रहे हैं।
बेटा,हम देश की और खाशकर अपने गांव वासियों की सेवा करना चाहते हैं,
कम शब्दों में कहें विकास करना चाहते हैं।
लेकिन ये वो शख्स हैं जो आजतक परधानी का चुनाव तक नहीं जीते! और जीतते भी कैसे, रोज कहीं न कहीं लड़ाई करते हैं और मारपीट तो इनके लिए आम बात है।

दरअसल इनके पिता जमींदार थे, वो तो अब रहे नहीं लेकिन ये हेकड़ी दिखाने से बाज नहीं आते हैं।
और पढ़ें लिखे कुछो नहीं हैं ठीक से जोड़ घटाना नहीं आता है और विधायकी का चुनाव लड़ें चल दिए,
एक खाशबात और है इनमें ये पेन जरूर दो चार ऊपर की जेब में डालें रहेंगे और और एक पर्ची जरूर लिए रहेंगे, जिनमे अंग्रेजी के कुछ शब्द लिखे रहेंगे, किसी से बात करेंगे तो धीरे से अंग्रेजी के शब्द देख लेंगे और हथौड़े की तरह दे-मारेगें सामने वाला समझे या न समझे।

गरीब आदमियों की पैसे गबन कर जाते हैं और जमीन हड़प लेते हैं, और नशा तो ऐसा करते हैं कि नशा भी कहता होगा कि इस आदमी से बस बीस गज दूर ही रहना है।
ऐसा कोई नशा नहीं जो ये न किये हों।
एक पान का डिब्बा जरूर साथ में लिये रहते हैं, और होंठों में लाली जैसे लगाये बस जोरदार फेंकते हैं और अगर फेंकते समय पान का बीड़ा आधा अगर वापस जमीन पर गिर रहा है या किसी आदमी के ऊपर तो समझ लीजिए बात महत्वपूर्ण है और जरूरी है।
शाम तक नेता जी की खटारा साइकिल आती दिख रही है, वैसे तो नेता काफी धनी व्यक्ति है लेकिन साइकिल से खाश लगाव है, और ये लगाव बस दो चार दिन का है चुनाव के बाद फिर मोटर गाड़ी में चलेंगे।
नेता जी सबसे प्रचार करते हुए आ रहे हैं और विकास कराने की लम्बी चौड़ी डींगे हांकते हुए थोड़ा मुस्कुराते चोरों जैसे नजर ताडते आ रहे हैं।
जब से विधायकी का चुनाव लडने का फैसला किया है वैसे ही तेवर बदल गये हैं,
चौबीस घंटों में कम से कम लगभग अट्ठारह  घंटे जनता के बीच रहते हैं और प्रचार प्रसार करते हैं, लेकिन ये आश्चर्य की बात है कि जो आदमी लोगों से ईर्षा, नफ़रत और लडता रहा हो वो ऐसा भी हो सकता है।
चुनाव के एक दिन पहले दावत का आयोजन किया नेता जी ने जिसमें मदिरा और मांस की भरमार रही और जो ये सब नहीं करते उन्हें अलग से बढ़िया पकवान दिये गये। सब लोगों ने छकभर खाया और खूब दावत उड़ाई।
जाते जाते सब लोगों को पांच सौ रुपए के नोट और साथ में चुनाव चिन्ह वाली पर्ची दी गई और सबको हिदायत दी गई की कल के चुनाव में खूब वोट बरसने चाहिए। और कहा अगर मैं जीत गया तो पन्द्रह हजार सबको रूपये दूंगा पूरे गांव भर के लोगों को।
सब काफी खुश हुये इतनी रकम सुनकर और चुनाव वाले दिन नेता जी के पाले में खूब वोट बरसे और कुछ दिन बाद परिणाम भी आ गया और नेता जी जीत गये और आज सच मुच नेता जी बन गये।
छः महीने गुजर गए हैं नेता जी का कोई अता-पता नहीं है, अरे! कोई तो शुध लो कहीं नेता जी स्वर्गवासी तो नहीं हो गये,
चुनाव के बाद ऐसे गायब हो गए हैं जैसे "गधे के सर से सींग"।
खैर छोड़िए उन बातों को ये सोचिए विकास कहा गया, विकास तो गांव में कट्टा लिए नशे में गांव में बुलट में घूम रहा है, विकास तो नेता जी का एकलौता बेटा है।
और साथ चार लफंगे कंकाल ढांचे की तरह दिखने वाले विकास के दोस्त जो उसके साथ ऐसे रहते हैं जैसे "मल में बैठी मक्खी"।
गांव वालों को पहले पता नहीं था कि नेता जी इस विकास की बात कर रहे थे, 
बस कह रहे थे गांव में विकास होगा, अगर पता होता ये विकास होगा तो लोग वोट ही न देते।
पर क्या करें लोग भी "गरीब लोगों का दिल भी मोम का होता है जल्दी पिघलता है"।
शाम हो चाहे सुबह विकास और उसके चार लफंगे कंकाल गरीब बेटियों को छेड़ते रहते हैं, लोग शिकायत भी करते हैं पुलिस और कानून कोई कार्यवाही नहीं करते, 
बस किसी तरह टाल देते हैं और उल्टा उन बेचारी गरीब लड़कियों पर इल्ज़ाम लगाने लगते हैं।
पूरा गांव विकास के खौफ में डर डरकर जीता है , विकास पर तीन हत्या के मुकदमे दर्ज थे पहले से उन पर भी सुनवाई नहीं होती।
एक दिन तो हद ही हो गई एक गरीब असहाय लड़की रिम्पा जो कि बीस वर्ष की थी विकास और उसके चारों दोस्तों ने मिलकर हैवानियत की,
इससे पूरे गांव में दहशत का माहौल बन गया, उसके भाई ने विकास और उसके चारों दोस्तों के खिलाफ रपट लिखवाने गया,,
पहले तो दरोगा रपट नहीं लिख रहा था,
कह रहा था कि ले देकर मामला रफा-दफा कर लो।
लेकिन रिम्पा के भाई ने कहा तेरी बेटी होती तब भी तू यहीं बोलता,बस इतना कहते ही उसे बुरी तरह पीटा गया फिर छोड़ दिया गया,
जब ये देख कर प्रर्दशन होने लगे और लोग सड़कों पर आये तो दरोगा ने एफआईआर लिखा।
उधर रिम्पा का चार दिन इलाज चला और उसकी मौत हो गयी।
फिर पुलिस जल्दबाजी में कहीं ऊपर से बड़ा एक्शन न हो जाये,
पुलिस ने जल्दबाजी में रिम्पा का शव जला दिया बिना रिम्पा के घरवालों के मर्जी से।
ये कुकृत्य के लिए फांसी की मांग जोरों शोरों से उठने लगी लेकिन प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं था।
पुलिस प्रशासन समझौता कराने की जी तोड कोशिश करती है और आखिर सरकार कुछ रुपयों का झुनझुना देती है, 
उस झुनझुने तथा धमकियों में परिवार शांत हो जाता है।
उधर नेता जी विधायकी/राजनीति का पावर दिखा रहे थे,
आखिर अंत में राजनीति के आगे एक गरीब परिवार हार गया,
सरकार और विपक्षी लोगों ने खूब सियासत की और आखिर न्याय नहीं दिला पाए।
एक गरीब बेटी पर राजनीति कर लोगों ने और नेताओं ने यह बाता ही दिया कि राजनीति से बड़ी कोई ताकत नहीं।
और यह भी खूब अच्छी तरह समझा दिया कि राजनीति कितनी क्रूर है, इसमें न्याय की मांग करना व्यर्थ है।
एक अनपढ़ आदमी जो पूरा देश चलाता है,
बल्कि उसे देश का कुछ ज्ञान ही नहीं है।
लेकिन झूठ और फरेब के दम पर भाषण बाजी करता है और मीडिया उफ तक नहीं करती।ये आज की मीडिया का चेहरा है।
आज की राजनीति और नेतागिरी बहुत दिनों तक याद की जाएगी, एक मर्ज की तरह ऐसा मर्ज जो देश को खोखला और कमजोर कर गया, जिससे यह देश आज भी विकसित नहीं हुआ।
जाति और धर्म के पाखंडवाद के पैरों तले विकास दबकर मर गया, 
यहां लोग जीने को ही विकास समझने लगे हैं।

कहानी पूरी पढ़ने के लिए धन्यवाद।।
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Anurag Maurya

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