विवाहिता का सामाजिक डर . . .
समाजिक डर के कारण एक विवाहिता किसी को बार बार "भैया" बोलती है।
क्या आप जानते हैं कि उसने अपने भाई को इतनी बार भैया नहीं बोला होगा।
मगर,बार-बार भैया बोलना उसके मन में बैठा डर पूरी स्थिति बयां कर रहा।
कैसे समाज में रहते हैं हम?
क्या संदेश देना चाहते हैं हम नयी पीढ़ी को?
क्या दोस्ती पर भी लोग शक करेंगे?
क्या विवाह के बाद महिला और पुरुष दोस्त नहीं हो सकते?
ऐसे बहुत सारे सवाल है जो दिलोज़ेहन में कौंधते रहते हैं।
क्या कभी वो दिन भी आयेगा
जब किसी शब्द विशेष को बार बार दोहराने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ये दिखाने के लिए कि रिस्ता भाई-बहन का है!
सामाजिक सोच ख़तरनाक है
लेकिन समाज भी हमीं से बना है, और समाज में ऐसे मुट्ठी भर ही लोग होंगे जो सकारात्मक ऊर्जा का परिचय दे रहे हैं।
मुझे लगता अगर सब कोई खुद को सकारात्मक सोच दिशा में प्रवाहमान कर ले तो यकीनन एक रोज़ समाज जो बिमार हो चुका है ठीक हो जाएगा!
Anurag Maurya
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