मरते-मरते  रही   बस  यही  आरज़ू,
अपनी  जां  को मैं  वतन  पे  वार  दूं।
रगों में बहते एक एक बूंद की  कसम, 
आज सैनिक होने का मैं कर्ज उतार दूं।
हो  रहे   क्यूं   अलग   पताका   के   रंग,
तीन रंग  को  मिला  देश  को  रफ़्तार  दूं।
धर्म  कब  से   देश   से   बड़ा   होने  लगा,
मैं तो धर्म को नहीं इस चमन को प्यार दूं।
देश को क्या वो दिन दिखाओगे तुम,
एक  सच्चा  ईमानदार  पत्रकार  दूं।
सत्य को कैद किया झूठ बरी हो गया,
क्या उसी पत्रकार को  मैं  आभार  दूं।

Anurag Maurya

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