Anurag Maurya

जब नहीं मिटा पाया उसका नाम!


जब नहीं मिटा पाया उसका नाम
मैंने अपना ये हाथ जला लिया!

और जब नहीं मिला कोई अपना,
मैंने ये हाथ खुद से  मिला लिया!

उम्मीद थी एक दिन जरूर लौटेगी वो 
ये कह कर खुद दिलासा दिला लिया!

 नहीं देख सकता उसे ग़ैर की बाहों में
 बस इसी वजह से आंखें सिला लिया!
 
उसकी उम्मीद में मैं जीता रहा ताउम्र
जब मरना था उसकी तश्वीर मंगा लिया!

Anurag Maurya

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