जिम्मेदारी . . .
कैसे 🤔भाग🏃 जाऊ मैं ,
छोर कर जिम्मेदारियों को ,
टिकी 🧐है निगाहें सभी की ,
कैसे तोर 💔जाऊ मैं,
वो पिरोए 💝हुए खाबो को।
न कह 🗣️पाते ,
न हम सुना 🗣️पाते किसी को,
बस दिल❤️ में दबा के ,
रखे है अपने खाबों💝 को।
न 😟चाहते हुए भी करना⛏️ पड़ता है,
सभी की फटकारे सुनना 🗣️पड़ता हैं,
हर पल मन को झुठलाना🙍 पड़ता है,
क्या करे जनाब ,
जिम्मेदारियों तले सब कुछ 😓सहना पड़ता है।
जैसे वो कहते वैसे चलना🚶🏼 पड़ता है,
हर हमेशा उनके इसरो 😒पर करना पड़ता है,
अपने दुख़ 😥को छुपाना पड़ता है,
परिवार को सुख 🙂में हैं ,दिखाना पड़ता है,
क्या करे जनाब ,
जिम्मेदारियों के आगे अपने आप को झुकाना पड़ता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें