जगत की बेरंग जिंदगी . . .

शाम का सूरज ढलते ही सड़कों की चहल-पहल खत्म हुई। चिड़ियां अपने अपने  बसेरे की ओर जाती हुई दिख रही हैं।


आज रागिनी फिर से रो रही है।
लेकिन रोने का कारण क्या है?

दरअसल रागनी अंधेरे से बहुत डरती है,
और अंधेरा लगभग लगभग हो चुका है।
खैर चिंता की बात नही,

रागनी की सौतेली मां कोमल लालटेन जला रही है।
अब अंधेरा ऐसे मिट रहा है जैसे दीवार पर बर्ती की मदद से लिखे नाम धीरे धीरे मिट जाते हैं,ऐसे अंधेरा मिट रहा है।


दरवाजा खोलो की आवाज़ आई बाहर से,
कोमल ने सोचा जगत आ गया होगा।
जगत रागनी का सगा बाप है।
दौड़ी दौड़ी गयी।
दरवाजा खोलते ही देखा तो, जगत कोमल के सामने खड़ा हांफ रहा था।
कोमल बोली आप इतना हांफ क्यूं रहे हैं!

क्या हुआ!


जगत बोलता है,अरी! तुम नहीं जानती हमारी जमीन में सरकार फैक्ट्री खोलने जा रही है।

मैं खेत में गोड़ाई कर रहा था,तभी कुछ अफसर और कुछ नेता वही जमीन का मुआइना कर रहे थे।
और वो दूरबीन जैसी किसी चीज से बार बार हमारे खेतों की ओर इशारा कर रहे थे।
अब अगर सरकार हमारी जमीन ले लेगी, तो हम खेती कहां करेंगे और ये ज़मीन हमारी मां समान है।इसे कैसे किसी को छूने देंगे।


हम तो भूखों मर जायेंगे, और भी तमाम बंजर जगहें हैं जहां सरकार अपनी फैक्ट्री लगा सकती है।
हम गरीब किसानों को क्यों तंग किया जा रहा है?
हमने उनका क्या बिगाड़ा है?

क्या सरकार अपने फायदे के लिए गरीबों को मार देगी?
ये अनपढ़ नेता तो बस हमारी जमीन को हड़पने में ही लगे हैं।


इतने में कोमल कहती है आप हाथ मुंह धोकर आ  जाइए,खाना खा लीजिए इस बारे में कल बात करते हैं।
अभी बातें करेंगे तो रागनी जग जायेगी,
और फिर रोयेगी तो क्या करेंगे।


जगत:-अच्छा आज खाने में क्या है, बहुत जोरों की भूख लगी है।
कोमल:-आज तो रोटी हैं और नमक है।

थोड़ा सा रागनी खायी है, और आप भी खा लीजिए।खाना कम ही है थोड़ा खाइये
कुछ रोटियां कल के लिए भी बचाना होगा।


जगत:-बारिश की वजह से फसल बर्बाद हो गयी है।
और खेतों में तो पानी भर गया है नहीं तो आषाढ़ वाली तरकारियां बो देते तो कुछ खाने को हो जाता और थोड़ा खर्च भी चलता रहता।
तो ये नौमत न आती लेकिन क्या करें प्रकृति का कोई ठिकाना नहीं कब क्या कर दे।


रात हो चुकी है,सब लोग सो चुके हैं।
बदरी की वजह से चांद कभी निकल आता है कभी छिप जाता है।
मानों कोई बच्चा अपनी मां के साथ लुका छिपी खेल रहा हो।
कुछ देर उपरान्त फिर बारिश शुरू हो गई‌।
रुक रुक कर बारिश हो रही है।


चिड़ियों की चहचहाहट के साथ ही सुबह हुई,
आज का दृश्य कुछ दूसरा है शायद रात में कुछ ज्यादा ही बारिश हो गई।
खैर कोमल जगत को जगा रही है,,
कोमल:-'अजी उठते हैं'! दिन कितना चढ गया है,
आपको कुछ खबर भी है।
खेत नहीं जाना है क्या?
रात भर रुक रुककर हो रही बारिश ने न जाने कितने खेत डुबो दिये होंगे।


जगत:-अरी भागवान! थोड़ा सा सोने भी नहीं देती, थोड़ी देर न जागूंगा तो कौन सी आफत आ जायेगी।


जगत उठता है और फिर खेतों की तरफ चल देता है, खेतों में लबालब पानी भर चुका है,जो  बची कुची फसल थी,सब डूब गई है।
जगत खेत की एक मेंड में सिर पकड़कर बैठ जाता है, और कुछ सोचने लगता है।
तभी कुछ देर बाद उसे पता चलता है कि रागनी को ज्वर है।
वह फिर घर की ओर प्रस्थान करता है
और देखता है रागिनी सिरदर्द से कराह रही  है।
उसे फौरन गांव के ही वैद्य जी के पास लिवा जाता है,
ज्वर बहुत ज्यादा था इसलिए वैद्य जी शहर में बड़े डाक्टर को दिखाने को सलाह देते हैं।


जगत शहर जाता है डाक्टर से मिलता है तो पता चलता है मलेरिया हुआ है रागिनी को।
लेकिन जगत के पास दवा लेने के पैसे नहीं होते हैं, तो वह रागिनी की सौतेली मां कोमल के गहने बेच देता है।
रागिनी को अस्पताल में भर्ती कर लिया जाता है ,क्योंकि मलेरिया के उपचार में  देरी होने के कारण खतरनाक स्तर पर मलेरिया पहुंच जाता है।


अब अस्पताल ने इलाज शुरू कर दिया है।
जगत और कोमल अस्पताल के कोने में जमीन पर बैठ कर रो रहे हैं।
तीन दिन बीत जाते हैं।
अस्पताल का एक कर्मचारी जगत को बताता है, कि आपकी बेटी के उपचार में अभी और पैसा लगेग,आप पैसों का इंतजाम कर लीजिए। अन्यथा की स्थिति में हम कुछ नहीं कर सकते।


जगत अपने रिश्तेदारों से पैसे मांगने जाता है, लेकिन पैसे तो नहीं लेकिन उसे जलील करके भेज दिया जाता है।
काफी लोगों के पास मदद की गुहार लगाने जाता है, लेकिन कोई फायदा नहीं होता है।
और तो और लोग चार बात ऊपर से सुना देते हैं।


कोमल फिर जमीन बेचने की सलाह देती है, लेकिन जगत जमीन गिरवी रखने को राजी हो जाता है।
पास के ही गांव के नेता जी के पास जगत जमीन गिरवी रख देता है।
और पैसे लेकर बिना विलम्ब किए, अस्पताल जाता है और पैसा जमा कराता है।
वो रागिनी से मिलना चाहता था, लेकिन अस्पताल वालों ने मिलने से रोक दिया था।



चार दिन बीत जाने के बाद उसे पता चलता है, कि कुछ अस्पताल के कर्मचारी आपस में चर्चा कर रहे थे कि उनकी बेटी की मौत तो कई दिनो पहले ही हो चुकी थी।
लेकिन अस्पताल वालों ने पैसे ऐंठने के फिराक में जीवित बताकर अस्पताल में काफी दिन भर्ती रखा।


अब जगत फूट फूट कर रो पड़ा।
कोमल चुप कराने में लगी है और जगत को सहारा दे रही है।
उनकी एक ही बेटी बची थी, क्यों कि गांव में कई साल पहले आयी महामारी उनके दोनों बच्चों का जीवन समाप्त कर गयी।
रागिनी तब अपने नानी के यहां थी तो वह इस प्रकोप से बच गयी थी।
लेकिन आज इस प्रकार उसकी मृत्यु हो जायेगी किसी को अंदाजा तक न था।


जगत को पता चलता है कि अस्पताल में हुई लापरवाही के चलते उनकी बेटी की मृत्यु हुई है,
तो वे अस्पताल से पूछते हैं लेकिन अस्पताल प्रशासन मौन हो जाता है।



अब वो पुलिस के पास जाते हैं लेकिन पुलिस उन्हें ही तीन दिन प्रताड़ित करने के बाद घर भेज देती है।
क्योंकि पुलिस को अस्पताल का मालिक पैसे पहले  दे देता है।
और अस्पताल का मालिक एक नेता है।


उधर जगत की जमीन गलत तरीके से हड़प ली जाती है। और पुलिस कुछ नहीं कर पाती है।
जगत बुरी तरह हताश हो जाता है, और उसे लगने लगता है उसका यहां कोई नहीं सब दुश्मन हैं।


पुलिस के अत्याचार और बहुत लोगों के सताये जाने के कारण वह स्वयं ही एक नक्सली गैंग बनाता है।
जिसमें इसी तरह सताये हुए लोग होते हैं,
फिर वो नक्सली गैंग अपने साथ हुए अत्याचारों का बदला लेते हैं।
और जंगलों में अपना जीवन यापन करते हैं।


नोट-इस कहानी का मूल उद्देश्य यह है की समाज में हो रहे अत्याचारों को सबके समक्ष लाना है।
यह कहानी किसी भी समुदाय का समर्थन नहीं करती।
कहानी के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया गया है।
और सरकार को यह सोचना चाहिए कि किसी भी इंसान के साथ अत्याचार या उसकी गरीबी का फायदा न उठाया जाए।

आप सब लोगों को कहानी से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा।
पढने के लिए सहृदय धन्यवाद।।

अगर आपको कहानी अच्छी लगी हो | आप नीचे दिए गए बटन से हमें दान कर सकते हैं। 



Anurag Maurya

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk