जो तुम रोज़ पूछते हो  उस सवाल सा हूं,
जो तुम तन्हा सोंचते हो उस ख़याल सा हूं,

कभी अपनी बाहों में भरकर तो देखो,
ख़ुदा से शिकवा करोगे उस मलाल सा हूं।

कि बेरंग जिन्दगी को भी रंगीन कर दूं
जो तुम गालों में लगाते हो उस गुलाल सा हूं।

कभी ताज़ुब न होना मेरी सादगी देखकर
मैं तुम बिन अंदर से आज़ भी  बेहाल सा हूं।

इन पंक्तियों से उम्र का अंदाजा मत लगाना,
बाखुदा मैं अभी महज़ सोलह साल का हूं।

Anurag Maurya

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk