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ज़ुल्म तुम सहती हो क्यों, झांसी की रानी की तरह, क्यों नही लड़ती हो तुम, पढ़े - क्या तुम इतने बत्तमीज हो जाओगे . . . खुद को तुम बेजबान जैसे रखती हो क्यों, हैवानियत के बाज़ार में, संघार क्यों नही करती हो तुम।
आज नज़र डाली है तन पे, कल जिस्म कुरेद कर जाएगा, फिर भी तुम चुप रही तो पढ़े - लौट आया है अभिनंदन . . . ये हरकत वो बार बार दुहराएगा ये बेधड़क छूने से बाज नही आएगा।
इसीलिए इन दरिंदो से तुम करो कुछ इस प्रकार संघार, नज़रें इनकी झुकी रहें और कभी न कर सकें ये तुम्हारे साथ दुराचार।
Good one, shubham.
जवाब देंहटाएंThanku Sr
हटाएं👌👌👌 Kaafi aacha Likha hai shubham 👌👌👌
जवाब देंहटाएंNice one👌👍
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