यहां पत्थर सा दिल लिए बैठे हो
सुना है मेरा कतिल़ लिए बैठे हो!
तेरी गुस्ताखियां हम कब का भूल गए
तुम मेरी कल की वो बात लिए बैठे हो!

जो हो गया सो उसका क्या ग़म करना
अब यक़ीनन तुम वो बात लिए बैठे हो!
भूल जाओ जो चला गया सो चला गया
क्यों उदास उसकी आस लिए बैठे हो!

तन्हाई के आलम में कुछ ग़ज़लें ही पढ़ो,
तुम क्यूं कोई फालतू किताब लिए बैठे हो!

Anurag Maurya

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