अनुभव से . . .
आज के युग में हर कोई अपने बेटी बेटा को इंजीनियर वैज्ञानिक डाक्टर सी ए आदि बनना चाहिते है। परंतु इसका ये मतलब ये नहीं है कि पहले के लोगों पर डिग्री नहीं होती थी तो भी वो लोग ये सभी काम करते थे, जो आज कल के डिग्रीधारी लोग करते है। और उसके कई उदाहरण है और बड़े बड़े व्यापारी कारखाने औषधलाया आदि बनाये और लोगों को की सेवा की और लोगों को रोजगार दिया।
भले ही कम पड़े लिखे होते थे परंतु व्यवहार और व्यापार सभी में आगे होते थे। एक घटना मुझे याद आ रही है। जिसको में यहाँ सुनता हूँ, मेरे शहर के साहूकार और नगर सेठ थे। उन्होंने अपने बेटे को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा और जब वह पढा़ई पूरी करके आपने देश में वापिस आया और उसने अपने शहर में एक कारखाना लगाने का प्लान किया जिसकी वो विदेश से शिक्षा लेकर आया था।
नगर सेठ ने भी बेटे के लिए पैसे भूमि आदि उपलब्ध करा दी। मशीनों का आडर विदेशी कंपनी को दे दिया गया। और मशीन सभी तीन चार महीने में आ गई। और मशीन फिट करने के लिए विदेशी इंजीनियर की पूरी टीम भी आ गई। सभी काम जोरों से चल रहा था। सभी काम प्लाट का पूरा हो गया और प्लांट तैयार हो गए। परंतु प्लाट की मैन बड़ी मोटर को बीस फिट नीचे स्थापित करना था।
और मोटर का वजन करीब 25-27 टन का था जिसको बड़ी क्रेन की आवश्यकता थी चूंकि इतनी बड़ी क्रेन नहीं थी पूरे प्रदेश में तो सभी इंजीनियर और कारीगर मजदूर आदि बहुत परेशान हो रहे थे परंतु मोटर को नीचे नहीं भेज पा रहे थे। काफी नुकसान भी हो रहा था क्योंकि प्लाट पूरा सेट हो गया था।बस बात मोटर पर आ कर रुक गई। रोज रोज उपाय करते और नतीजा कुछ नहीं निकलता था। अचानक सेठ जी को दयाराम मिस्त्री याद आया जो गाँव वालो को खेती के और अन्य जरूरतों के समान बनकर देता रहता था।
पढे़ लिखे तो बिल्कुल भी नहीं थे परंतु मैकनिकगिरी में मास्टर थे। उन्हे भी बुलाया गया और दयाराम को देखकर सेठ का बेटा बोला की ये क्या करेंगे अनपढ़ जब बड़े बड़े इंजीनियर और एक्सपर्ट नहीं कर पा रहे तो, ये क्या करेंगे? सेठ जी ने बेटे से कहाँ मुझे बात करने दो। सेठ जी ने पूरी बात बताई दयाराम मिस्त्री को, वो समझ गए और कहने लगे की मैं इस काम को कर सकता हूँ। परंतु मेरी एक शर्त है की यहाँ पर कोई भी इंजीनियर और आपके बेटे आदि की टीम यहाँ नहीं रहेगी और पांच छ: दिन का समय दो।
साथ ही जो मुझे समान चाहिए वो भी बिना किसी कारण और बात किये उपलब्ध कराना पड़ेगा। मरता क्या नहीं करता क्योंकि और कोई विकल्प नहीं शेष बचा था। दयाराम ने बीस फिट वाले गड्डे को भरने करीब 8-10 ट्रक बर्फ के ट्रक मंगवाए और बर्फ की शिलाओं को गड्डे में रखने लगे जब गड्ढा पुरा तरह से जमींन के बराबर आ गया तब मोटर को ट्रक से खींचकर गड्डे के बीचो बीच रख दिया और दो पानी फेकने वाले पम्प को गड्डे के उपर लगा दिया। जैसे जैसे बर्फ पिघलती गई और पानी के पम्प उस पिघले पानी को बाहर फेकते गये और मोटर धीरे धीरे नीचे जाने लगी, वो भी बिना क्रेन और मजदूरों के बिना और ये काम पांच दिनों में पूरा हो गया।
ये सब कुछ नजारा बड़े बड़े इंजीनियर और एक्सपर्ट लोगों ने देखा तो दंग रह गए। जो उन्होंने बड़ी बड़ी डिग्रियाँ हासिल की और एक अनपढ़ से मिस्त्री ने कर दिखाया। तब दयाराम मिस्त्री ने कहाँ की आज कल की डिग्रियाँ सिर्फ बच्चो को पढा़ती है परंतु वास्तविक ज्ञान नहीं देती जिसे हम और आप अनुभव कहते है। कोई कितना भी विद्वमान क्यों न हो परंतु उसे यदि व्यवहारिक और वास्तविक ज्ञान नहीं है तो उसकी पढ़ाई कोई काम की नहीं है।
सिर्फ उसे हैं डिग्री ही कहेंगे बस। पुराने लोग अपने अनुभवों के आधार पर क्या नहीं किये और वो भी बिना पढे़ लिखे होकर। आज के जमाने में सिर्फ झूठी चमक है जो अपने आप को श्रेष्ठ बताती है परंतु अनुभव के आधार पर एक दम शून्य है। शिक्षा का होना बहुत जरूरी है परंतु अनुभव और वस्विकता और व्यवहारिक ज्ञान भी बहुत जरूरी है।
Sanjay Jain
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