प्रेम है मित्र
अथाह,असीम
हृदयतल की गहराइयों से
निष्पाप,निष्कलुष
स्नेह है ,,तुमसे मित्र।

जिसमे वासना नहीं
हवस भी नहीं
कोई माँग नहीं
कोई उम्मीद भी नहीं
कोई वादा नहीं

कोई शिक़वा भी नहीं
बस नेह ही नेह
पावन ,पूर्ण
जो हर पल साथ दे
संग का एहसास दे।

ऐसे मित्र हो तुम।
कोई रिश्ता नहीं
कोई स्वार्थ भी नहीं
मानवता का रिश्ता
इंसानियत का सम्बंध।

कोई धर्म जाति ,
कोई वर्ग बन्धन नहीं
कभी मिले भी नहीं
कभी देखा ही नहीं

हमदर्द है, ,,
परवाह हैं,,
इक़ दूजे की,,
अहमियत भी हैं,,

बहुत बातें करते हैं
गम्भीर चिंतन करते हैं
ध्यानानन्द में रहते हैं
तुम को मेरा दुख चाहिए

मेरी खुशी हर पल चाहिए,,
मुझे भी तुम खुश चाहिए,,
ऐसी दोस्ती
जो आत्मिक धरातल,,

मजबूत करे
मन को समझे
सराहे,,इक़ दूजे को
चिन्ता करे ,,

दुआ करे,
हितचिंतक हो,,
सबसे पवित्र रिश्ता

दोस्ती का,,मित्रा
देह आकर्षण नहीं
कोई दबाव नहीं
दोषारोपण भी नहीं,,

मददगार हैं
उपकार नहीं
एहसान भी नहीं
बस निश्छल प्रेम

स्नेहपूर्ण व्यवहार
जिसमे देने का गर्व नहीं
लेने की लज्जा भी नहीं
बस,,है केवल

अथाह लगाव
मन की बातों का सुख,,
तकलीफ का एहसास
दर्द की अनुभूति

आँसुओं से हमदर्दी
बोलो,,
निभा पाओगे
ऐसा रिश्ता
मुझसे,,

मुझे तो है स्वीकार,,
और तुम्हें
है कि नहीं,,,
बोलो,,

सोचो
फिर जवाब दो,,
कोई जल्दी नहीं
मुझे,,

करूँगी इंतजार
हर पल
हर दिन
आजीवन
सच्चा

रिश्ता,,ज्यूँ
द्रोपदी और कृष्णा।

स्वरचित
अतुकांत कविता

Neelam Vyas

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