सुनो पच्चीस साल हो गए,,
हमें संग रहते प्रेम से,,
खुश हूँ आपको पाकर,,
आप भी मुझसे खुश हो,,


मगर,,कुछ राज बताना चाहती हूँ,,
आपको,,बहुत अरमान से,,
कई समय से,,बरसों से
बताना चाहती थी


मगर,,कभी हिम्मत नहीं हुई,
कभी मूड सही नहीं
कभी आप फुर्सत में नहीं
कभी मैं मशरूफ बहुत,,


अब कह दू क्या,,
खोल दू मन के अवगुंठन,,
सच में
वो ये कि,, मुझे
आप के साथ लुभाता हैं,,


थके हुए क्लांत घर आते हो
नज़रों से चूम लेती ललाट
मगर ,गम्भीर चेहरा देख कर,,
हिम्मत ही नहीं हुई,,


बहुत गहने बनवाए
मगर आज संग चलकर
हरी हरी काँच की,,
रंग बिरंगी ,,चूड़ियां दिलाओ न


सुनो,,पैदल चले संग संग
चाट पकौड़ी खिलाओ न
संग संग भीगे आज


इतनी फुर्सत निकाल लो न
बचकानी नहीं मेरी ये माँग
हृदय की गहराई से
खुद जान लो न


कि,, मेरे अंदर की बच्ची
तुम संग हर छोटी छोटी ,,
बात ,,इच्छा,,बाँटना
ही तो चाहती हैं


उम्र के साथ,साथ
बहुत गम्भीर हो गए हो
खुलकर मेरी हरकतों पर,,
अब हँस ही दो न,,


सुनो,,हरीतिमा बिखेरती
धरा को देखने संग चलो न,,
कुछ पल ,,अनमोल
बना दो मेरे,,


जी भर जिला दो मुझे,,
मेरी कविता पढ़ो ,सुनो,
सराहो,, कमी बताओं बन
पति से प्रेमी,,प्रेमी से दोस्त,,


बचपन के खेल का संगी,,
बन जाओ न,,


बोझिल ,व्यस्त जिन्दगी को
सावन की फुहार में संग भीगकर
धुली धुली सी खिली बनाओ न,,


रसोई में मेरे संग ,,बात करो न
नई रेसिपी को चखो न
बेबात ही ,,इक़ दूजे की आँखों में,,


देखे,हँसे और खिलखिलाए,,
लबों पे वो खिलती मुस्कान,,
फिर से ,,लाओ न
जिम्मेदारी के बोझ तले,,
दब,,कब वक्त गुजर गया,,


आओ,, मेरे संग गुनगुनाओ न
वो मेरे मन ने जो जो चाहे,,
आज उनको जान लो न,,
व्यवस्थित ढर्रे पे चली जिंदगी,,


थोड़ी ,,रौनक से भरो न,,
पुनः आज सिंगार करू
हथेली भर चूड़ियां पहनू,,


उनकी खनक में खो जाओ न
वो छोटे छोटे से पलों की खुशी,,
बहुत पीछे छोड़ आए ,,जो


आओ,,उम्र को पीछे ले जाकर,,
उन पलों को जी लेते हैं,,
बहुत एकाकी हूँ आप बिन


बहुत उदास हू आपकी तवज्जों बिन,,मुझे मनचाहा वक्त,,
दे दो न,,
बेरहम जिंदगी ने समय से पहले ही,,
बूढ़ा बना दिया हमें,,


आओ ,फिर बच्चे, अल्हड़ बन जाएं,,
सुनो ,मरने से पहले ,ये हसरतें पूरी करो न,,
कुछ दिन मेरे मनचाहे दे दो
खुद को पूरा ,,बेफिक्र ,अलमस्त


बनाओ,,मुझे सौंप दो न
वो अवगुंठन ,,जो बरसों से दबी हुई हैं,, आज ,,खोल दो न
बस,,जी ले हम दोनों
कुछ अपने से वो खास पल,,


फिर लौट आते हैं,,
पुनः इसी दुनियां में
जिम्मेदारी ,,निभाने को


सुनो,,मेरी बात,,
स्वीकार ,,करोगे क्या,,
सोचो,,


फिर ,,बताना मुझे,,
प्रतीक्षा रत,,हूँ,, अबूझ पहेली
अमिट ,प्यास,,आस लिए


ओ साथी।।
विनती।

Neelam Vyas

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