जीत हमारी पक्की होगी,
जब मन में ही हम ठान लिए।
हैं समझदार शासक ये अपने,
हम उनका कहना मान लिए।

प्रकृति को हमने है छेड़ा,
जल, वन, पशुओं को न छोड़ा,
न जाने कितने हैं हम ने नुकसान किये।
हम मानव बुद्धिजीवी हैं,
बस इतना ही अभिमान लिए।

पृथ्वी है ये अपना ही घर,
भूल गए हम मंदबुद्धि नर।
छीन गया ये आशरा,
सोचो फ़िर जाओगे किधर।

मंगल, चांद औरों उपग्रह,
कोई न आएंगे काम।
धरती माता रूठ गयी तो,
बहुत बुरा होगा अंजाम।

कितनी ग़लती हमने की है,
छोटी सी ये सज़ा मिली है।
रहना है अपने ही घर में,
जीना पड़ेगा ये ज्ञान लिए।

सुरक्षाकर्मियों और चिकित्साकर्मियों को
आदित्य करता बारंबार नमन है।
जो डटे हुए हैं हमारे लिए,
हथेली पर ख़ुद की जान लिए।

जीत हमारी पक्की होगी,
जब मन में ही हम ठान लिए।
हैं समझदार शासक ये अपने,
हम उनका कहना मान लिए।

Aditya

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