जीत हमारी पक्की होगी, जब मन में ही हम ठान लिए। हैं समझदार शासक ये अपने, हम उनका कहना मान लिए। प्रकृति को हमने है छेड़ा, जल, वन, पशुओं को ...
नहीं है मुझे, मुहोब्बत उससे, लो आज सरेआम कहता हूँ। पढ़े - एक कर्मनिष्ठ नेत्री को . . . की नहीं है डर मुझे, अब जुदाई का, लो आज खुल...
एक कर्मनिष्ठ नेत्री को हमने खोया है। आशाएं अमर है, लाभन्वित होंगे ही हम उससे जो कुछ भी इन्होंने बोया है। प्रकृत...