ऋषि जमदग्नि के ओज पुत्र
वीर ,धीर आज्ञाकारी बड़े पुत्र।
सब भाइयों में श्रेष्ठ आचरण पुत्र।
नारायण के अवतारी हुये धरा पुत्र।

पिता को संदेह हुआ था जब।
माँ रेणुका के चरित्र पर जब।
अन्य पुत्रोने इनकार कर दिया जब
माँ की हत्या कर पित्राज्ञा पाली तब

पिता का खुश होकर आशीष देना।
मन चाहा वरदान माँगने का कहना
माँ का जीवन दान पुनः माँग लेना।
पिता का सहर्ष माँ को जिला देना।

राजा सहस्त्र बाहु ने की हत्या।
कामधेनु को छीनने की हत्या।
परशुरामजी नहीं थे तब की हत्या।
पिता की कर दी पापी राजाने हत्या

माँ ने कूटी छाती इक्कीस बार जब
परशुरामजी को पुकार कर जब।
भीषण प्रतिज्ञा की थी पुत्र ने तब।
राजा सहस्त्र बाहु वध किया तब।

इकीस बार क्षत्रिय राजाओं का वध
किया परशुरामजी जी ने जब वध।
पुत्र भक्ति दिखलाई थी वीर ने जब
धरा थरथरा उठी भय से तब तब।

राजाओं का वध कर राज्य उनका
दान कर दिया राज लोभ नहीं रखा
ब्राह्मण ,देव,महिदेव को दानदिया
स्वयम न कुछ लिया सब दान दिया

अति क्रोधित,युद्ध वीर ,प्रतापी वे।
फरसा धारी परम् साहसी थे वे।
आन बान शान के धनी थे वे।
भानु से देदीप्यमान ,प्रखर तेज वे।

राम जानकी स्वयंवर में क्रोध किया
शिव धनुष तोड़ा राम वरण हुआ।
शिव भक्त परशुराम जी क्रोध किया
लखन ओ उनमें फिर विवाद हुआ।

जल सम शीतल ,मधुर वचन बोले।
राम जी को शक्ति परीक्षण बोले।
संतुष्ट हो दे आशीर्वाद फिर चले।
क्रोध मध्य आशीष के फूल खिले।

कर्ण को शिष्य बना दिव्य ज्ञान  दे।
झूठ से आहत अभिशाप भी वे दे।
सत्य ,धर्म ,कर्त्तव्य के धारी थे वे।
अनुपम ,तेजस्विता से पूर्ण थे वे।

अक्षय तृतीया को अवतरण हुआ ।
जन जन को तप तेज पुंज मिला।
आदर्श चरित्र,शक्ति का देव  मिला।
पूजे  नर नारी अवतारी मनुजमिला

Neelam Vyas

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