ओ जगत पिता,नव ऊर्जा से भरो।
प्राची की स्वर्ण मयी रश्मि से भरो।
सुवासित नीर को तन मन में भरो।
उषा काल का जादू जिस्म में भरो।

तन्द्रा लस अलको की सुषुप्ती हरो।
नव ओज से हृदय में उमंग भरो।
शिथिलता हटा स्वतः स्फूर्त बनाओ।
जीवन की कर्मठ गति शैली सुधारों।

ओ सुदूर गगन के उगते दिनकर।
गौर ,उज्ज्वल किरणों से उजास  कर।
रजनी की कलुषित निंदा को मिटा कर।
नैनो में उगता भानु आस का उगाकर।

तुम आओ ओ हेमकुम्भ से किरणें बिखेरो।
हिम पर्वत को लालिमा युक्त बनाओ।
सागर ,नदियां के जल को पावनता दो।
धरा को कोमलता ,स्निग्धता , हरीतिमा दो।
ओ जग प्रणेता ,महामारी हर निरोगता दो।

छायी  उदासी,दुःख ओ भय ,,तुम संजीवनी दो।
रोग त्रस्त मानव को स्वस्थ ,निरोगी ,तन मन की निधि दे दो
दोपहरी की सुकूँ ,शांति ,जीवन में तुम भरो।
रात की धीरता से जन को निरोगता, नींद से भरो।

ओ प्रकति,ओ जगत के नियंता,,त्राहि माम् ,।
ओ परमेश्वर,,धरा पे पुनः अवतार लो,त्राहिमाम।
ओ जगजननी ,माँ ,हम बच्चों को निरोगी बनाओ।
कलयुग की भीषण वैश्विक बीमारी से त्राहिमाम।

Neelam Vyas

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