जब जब पाप बढ़ा  धरा पर घनघोर।
लिया प्रति शोध प्रकृति ने मचा दिया तांडव हर ओर।

अमानुषिक आचरण,नारी पर अत्याचार हर ओर।
मौन मूक पशुओं को मारा हड्डी  चमड़ी खोल।

भ्र्ष्टाचार फैला,झूठ कपट बेईमानी का बढ़ा जोर।
कलयुगी समाज की हो गयी नग्न ,कलुषित सोच।

मानव अंगों का व्यापार,बच्चों का अपहरण कर  बेचे वो।
रिश्तों को कलंकित करते चंद सफेदपोश चोर।

आंतक वाद बढ़ा कर,निर्दोषों को मारा ,देश लुटे चोर।
विकल होकर धरती माता पाप को कम करने को सोच।

जब जब हिंसात्मक आचरण से गयी धरा भय से डोल।
महामारी का तब तब बढ़ा धरती पर प्रकोप।

ऐसे ही पाप का बोझ धरती माता करती कम हर ओर।
नेक ,भला बच जाएगा  ओ पापी अब तू तेरी सोच।

प्रतिशोध धरती का प्रकट हुआ महामारी का रोग।
ओ मानव अब भी प्राश्चित करले ,,थम जाएगा तब प्रतिशोध।

ओ माता करते हम सब प्रतिज्ञा,,,बन्द कर लेना प्रतिशोध।
हर मानव धर्म पूर्ण  जीवन बना लेगा,कम कर अब तू क्रोध।

आया समझ  में मानवता का धर्म बड़ा है बाकी सब व्यर्थ मोह।
डॉक्टर ,नर्स है  भगवान कलयुग के,बाकी सब बने बोझ।

जब जब पाप बढ़ जाता हैं प्रकृति संतुलन को लेती  प्रति शोध।
सरल ,निर्मल ,निष्पाप जीवन बना ले मानव रख पावन सोच।

Neelam Vyas

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