माना कि तेरी नज़रों में सफ़्फ़ाक है वो लड़की
पाक-बदन पर मुझे लगती अफ़्लाक़ है वो लड़की

अंजाम-ए-मौत जैसे ख़तरों से खेलती है अक्सर
जरा सोचिए तो! कितनी ख़तरनाक है वो लड़की

यूँ तो बेख़ौफ़ हँसी का फ़व्वारा बनाती फिरती है
पर सच कहूँ मियाँ बड़ी दर्दनाक है वो लड़की

जब चाहो कीचड़ उछालते रहते हो तुम उस पर
तुम्हें ख़बर नहीं क्या? कितनी पाक है वो लड़की

गो डरती नहीं बल्कि डर को डराती है हरदम
सच में यार बड़ी बेलौस-बेबाक है वो लड़की

ख़ुमारी हद से ज्यादा जो आजकल चढ़ी है तुझपर
जानते नहीं क्या? कितनी ख़ौफ़नाक है वो लड़की

बँधकर बिख़र गई जो उम्मीदें इस ज़माने से
उन्हीं बेपैरहन उम्मीदों की पोशाक है वो लड़की

अपना रिश्ता निभाने में भी कतराते हैं लोग
गैरों से रिश्तें निभाने को मुश्ताक़ है वो लड़की

एक मासूम को यूँ बेहाल किया भूख ने, की
ललचाई नज़रों से तकती खूराक है वो लड़की

ज़माने का सितम ढ़ोते-ढ़ोते मर गया राँझा
उसकी याद में हुई ज़िगर-चाक है वो लड़की

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