माना कि तेरी नज़रों में सफ़्फ़ाक है वो लड़की पाक-बदन पर मुझे लगती अफ़्लाक़ है वो लड़की अंजाम-ए-मौत जैसे ख़तरों से खेलती है अक्सर जरा सोचिए ...
लफ़्ज़ तो कमबख़्त हल्के हैं मगर ख़ामोशियाँ भारी है फिर भी सबकुछ ठीक है ये कहने की रस्म जारी है आज खुलकर हँस लो यारो! कल तो फिर जख़्म की बारी ...