वो खामोश रिस्ते ( माँ और उसके छोटे बच्चे के बीच में )
वो मुस्कुरा देती है जब वो मुस्कुराता है
न जाने  कौन सा  रिस्ता वो निभाता  है
सुकूँ  से   बेख़ौफ़   सा   रहता        है
जब  उसका  अहसास  साथ  पाता  है
दिन रात,   रात दिन   कर वो देती है
अपनी सभी ज़रूरतें वो छोड़ देती है
अपने  ही    दिल  के   टुकड़े    संग
वो    शाम   को   भोर ,
भोर   को   दोपहर   कर   लेती   है खाती भी है
तो उसको ध्यान रख कर बोलती है
तो भी उसकी नींद का एहतराम  कर कर
एक करवट में गुजार देती है उसकी एक नींद कोसजदे में भी रहती है तो उसका ख्याल रख कर
न  जाने
किस  भाषा  में  वो  बोलता  है
न जाने
कौन कौन से राज वो दिल के खोलता है
सिर्फ वो दोनों  ही समझते हैं एक दूसरे को
वो उसकी गोदी को
         जन्नत समझ एक झपकी ले लेता है
अजीब रिस्ता है जो खुशियां दे जाता है
जरा सी बेचैनी उसकी
कितना उसको तड़पाता है
भूल जाती है खाना अपनी  दवा
उसका हौंसला उसका फर्ज निभाता है
थक  जाती   है  पर   फिरभी  खिलखिलाती  है
उसकी गंदगी को भी कितना प्यार से हटाती है
सहलाती है ..पुचकारती है वो अपने बेटे को
वो रिस्ता कितनी सिद्दत से निभाती है ......

Alok Singh

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk