बेटा है द्वार तरक्की का,
मधुऋतु है ये मधुशाला है।
जो जीवन करता आनंदित,
बेटा फूलों की माला है ।।

है स्वर्ण भरा घट बेटा तो ,
वृद्धावस्था की लाठी है ।
संबल घर का जो पलपल का,
सुख सपनों का सहपाठी है।।


बोझा घर का जो ढ़ोता है,
विचलित जो तनिक नहीं होता ।
जो बगियां की हर क्यारी में ,
उम्मीदों की फसलें बोता  ।।

जो माँ का कृष्ण कन्हैया है,
दशरथ का रघुवर प्यारा है ।
जिसने बनकर के श्रवण यहां,
जीवन का कर्ज उतारा है ।।


बेटे से इज्जत बढ जाती ,
वो इज्जत का रखवाला है ।
बहिनों का सच्चा रक्षक है,
अंधियारे में उजियाला है।।

बेटे से वंशबेल बढ़ती ,
वो कुल दीपक कुल तारक है ।
भव से वो पार लगाता है ,
सचमुच ऐसा उद्धारक है ।।


क्या कहा जमाना बदल गया,
बेटा दुक्खों की खाई है ।
मतलब से मतलब रखता जो ,
ऐसी कडवी सच्चाई है ।।

जब तक कमवय वो रहता है,
चोबीस कैरेट का सोना है।
लेकिन शादी हो जाने पर,
औरत का बना खिलौना है ।।


गर ऐसा है तो बेटे की, 
चाहत क्यों रहती बतलाओ ।
अजन्मे ही क्यों मार दिया,
जाता बेटी को समझाओ ।। 

बेटा बेटी में फर्क मगर ,
अधकचरी सोच यकीनन है ।
दोनों ही यकसां होते हैं,
दोनों जीवनधन कंचन है।।


जिनके बेटी है सिर्फ यहां,
देखा बेटे पर भारी है ।
मां बाप के खातिर हर बेटी,
लेती हर जिम्मेदारी है ।।

"अनंत" सोच अब बदलें हम
बेटी को भी बेटा मानें । 
मेहमान नहीं बेटी होती ,
इस सच्चाई को पहिचानें।।

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