जब बताने का मन मे न हो हौसला,
बेवजह घोंसला मत बनाया करो।
और उठा न सको तुम गिरे फूल को,
इस तरह डालियाँ मत हिलाया करो।
वो समंदर नही था थे आँशु मेरे,
जिनमे तुम तैरते और नहाते रहे।
एक हम थे कि आंखों की इस झील में,
बस किनारे पे सबकी लगाते रहे।
और मछलियां सब झुलस जाएंगी झील में,
अपना पूरा बदन मत डुबाया करो।
वो हमें क्या सम्भालेंगे इस भीड़ में,
जिनसे अपना दुप्पटा संभलता नही।
कैसे मन को मैं कह दूं कि कोमल है ये,
फूल को देख के जो मचलता नही।
और जिनकी दीवारों दर हैं बने मोम की,
उनके घर में न दीपक जलाया करो।
प्रेम को ढाई अक्षर का कैसे कहें,
प्रेम सागर से गहरा है नभ से बड़ा।
प्रेम होता है दिखता नही है मगर,
प्रेम की ही धुरी पर ये जग है खड़ा।
और प्रेम के इस नगर में जो अंजान है,
उनको रास्ते गलत मत बताया करो।
Wow👌
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