हार चुकी हुँ जीने से अब,
सोचती हूँ क्या करूँ मैं अब,
हार गई हूँ इतनी जिंदगी से कि पूछती हूँ बस इतना खुद से
सुनती नही मन की या सुनना नही चाहती
बढ़ती नही आगे या मैं बढ़ना नही चाहती?
मकसद क्या बचा है जीने का ये तो मैं खुद भी नही जानती,
दूर हो रहे हैं वो सारे सपने,
जिनके आंखों में थे मेरे लिए अपने,
खुद को नही करना चाहती उन सबसे दूर,
पर पता नही क्यो मैं हो गई हूं इतनी मजबूर,
पूछते है मुझसे बस सब इतना,
लछ्य क्या है तेरे जीने का?
क्या बताऊँ उन सबको कि सुनी नही मैं अब तक अपनी मन की,
क्या करूँ?
क्या न करूं?
समझ मे मुझे अब तक ये बात,
निकालूँ दिल की भड़ास या दबाये रखूं इसे दिल के पास,
सोचती हूँ कि बस कह दूं सबसे,
पर पता नही मैं डरती हूँ किससे,
सोचती हूँ जीवन अर्पण कर दूं उनके सामने,
जिसके सामने दुनियाँ दर्पण लागे,
शीतल पवन के झोखें कहने लगे मुझसे ये बात,
तू सुन ले अपने मन की बात एक और आखिरी बार...
Heart touching 👌🏻👌🏻👌🏻
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