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कभी-कभी जिंदगी इतनी बोझिल क्यूँ लगती है?? क्यूँ मन करता है सबको छोड़ जाने का? क्यूँ दिल करता है बेहद रोने का?? आखिर हम क्यूँ नहीं, औरों की तरह हँश्ते-मुश्कुराते है?? आखिर क्यूँ मेरी जिंदगी में इतनी मुशीबतें है?? कभी कभी जिंदगी इतनी बोझिल क्यूँ लगती है?? क्यूँ मन करता है आखरी साँस लेने का?? क्यूँ दिल करता है फिर से टूट जाने का?? आखिर हम क्यूँ नहीं, औरों की तरह सबको खुश रख पाते है?? आखिर हम क्यूँ नहीं, औरों की तरह उलझने सुलझा पाते है?? मुझे रातों को नींद क्यूँ नहीं आती?? आखिर मैं सारी रात सो क्यूँ नहीं पाता?? क्या मेरी रातें औरो से लंबी होती है, या तन्हा होती है इसलिए?? या फिर मेरे सपने या अपनों की फिक्र सोने नहीं देते?? ये कैसी मजबूरियां है, जिसे मैं जी नहीं पाता?? या ख़ुदा, ऐसे हमसफ़र बनाते ही क्यूँ हो, जिसका सफ़र छोटा होता है.!! कभी-कभी जिंदगी इतनी बोझिल क्यूँ लगती है??
यही सवाल खोजने में लगे है , इसीलिए ये जिंदगी भोझिल है।।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे वसीम....
बहुत बहुत आभार read a poetry का
जवाब देंहटाएंमुहब्बत prince भाई ❤️
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