वह सुर्ख लाल आफ़ताब क्षितिज को चीरता हुआ, आसमां की ओर रूख करने लगा। भोर की घोषणा कर मानो उम्मीदों की किरणें बिखेरने आया हो। चेतावनी देते हुए कहता है, "सपने ग़र करने हो पूरे, तो त्याग दो यह नींद।" पूरा दिन पीली मुखाकृति लिए खिलखिलाता रहेगा। शायद, मेरी मेहनत पर हँसता है। यह बेरहमी विश्वसनीय भी तो नहीं। सांझ होते ही, गुस्से में लाल होकर मुझे छोड़ लौट जाता है। तन्हा।
ये मेघ इसी के दोस्त हैं। खुशियों में तो ये भी साथ निभाते हैं। रुई से सफ़ेद, अनेक आकृतियों में मुस्काते हैं। परन्तु कमतर न आंकना इन्हें, फटकारने में ये भी माहिर हैं। ज़रा क्या आँख लगी मेरी, बैंगनी, स्लेटी जलघटा फैलाये, यह भी 'आँख दिखाने लगते हैं'।
वर्षा भी बेहरूपी है। बेरंग है साली। कब धोखा दे जाए, पता ही नहीं चलता। मंद-मंद छलकती है। खुद तो रंगहीन है, मेरे रंग में भी भंग डालती है। ज़रा सा काम से हट कर, संगीतमय माहौल में दो-चार ग़ज़ल मैं भी सुन लूँ तो क्या हर्ज़ है? ईर्ष्यालु है अभागन! रोष में स्वयं बाढ़ लाकर कहती है, मुझे ताने क्यों मिलते हैं?
चमकीला चन्द्रमा तो पैदायशी छलियारा है। अपने दागों को छुपाने के लिए हौले-हौले ही सामने आता है। पर सच भी तो है! "सपने यूँ ही तो होते हैं मुकम्मल, छोटे-छोटे कदम बढ़ाकर।" वो तारों की चादर भी इसी की गुलाम है। कहती है, 'स्टार' बनना है तो मेहनत को मत त्यागो।
कहाँ चले? इनके संरक्षक से तो मुलाकात कीजिये, जनाब! अम्बर है इनका राजा। वो नीला, अनंत गगन। नीला? आसमानी तो कभी श्वेत; गुलाबी तो कभी बैंगनी; लाल तो कभी पीला। ज़िंदगी सा रंगबिरंगा है यह नभ! हर परिस्थिति में मेहनत करने की प्रोत्साहना देने वाला।
परिश्रम का अब अंत होगा, इंद्रधनुष का जो अब आगमन हुआ है। सारी निग़ाहों को मदहोश किये, जीत का पैगाम आ ही गया! थम जाओ मित्र, अभी मेरा चित्र पूरा नहीं हुआ! हरित, हरे रंग की कमी रह गयी ना?
"कैनवास का चित्र तो तभी परिपूर्ण हो पाएगा,
हमारा तिरंगा जब आसमां में लेहरायगा।"


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