वह सुर्ख लाल आफ़ताब क्षितिज को चीरता हुआ, आसमां की ओर रूख करने लगा। भोर की घोषणा कर मानो उम्मीदों की किरणें बिखेरने आया हो। चेतावनी देते हुए कहता है, "सपने ग़र करने हो पूरे, तो त्याग दो यह नींद।" पूरा दिन पीली मुखाकृति लिए खिलखिलाता रहेगा। शायद, मेरी मेहनत पर हँसता है। यह बेरहमी विश्वसनीय भी तो नहीं। सांझ होते ही, गुस्से में लाल होकर मुझे छोड़ लौट जाता है। तन्हा।
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