अपनी जद में लेने को,
आमादा थी विपदायें,
इस इस कृत्य को देख,
मन हर्षित हो उठा,
क्योंकि इससे कहीं ज्यादा,
थी मेरी क्षमतायें,

सत्कर्मी सदैव सत्य कर्म का,
दिया जलाये,
कुकर्मी अंधकार ही पाये,

क्यों सूख रही लतायें,
*क्या बरसी नहीं घटायें,
कुछ ज्ञात नहीं है उनको,
कुछ सत्य तो कुछ की गयी कल्पनायें,
फिर भी उन पर,
रची गयीं रचनायें,
कौन नहीं सुनता कवितायें,
क्या सत्य पर,
आयीं हैं बाधायें।

अपनी जद में लेने को,
आमादा थी विपदायें,
इस कृत्य को देख,
मन हर्षित हो उठा,
क्योंकि इस कहीं ज्यादा,
थीं मेरी क्षमतायें।
Anurag Maurya

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