तुझको यकीं मैं दिलाऊँ कहाँ तक
खुद को नज़र से गिराऊँ कहाँ तक।
ये माना की तुमको जरुरत नही है
तुमसे मगर दूर जाऊँ कहाँ तक।
मेरे पास तो हैं खजाना भरा ये
आंखों से आंसू बहाऊँ कहाँ तक।
हवाओं की साजिश हुई आज तो है
चरागों को अपने जलाऊँ कहाँ तक।
मोहब्बत से मिलना है आदत हमारी
मोहब्बत से दामन छुड़ाऊँ कहाँ तक।
वानी से अपनी कहें कितना तड़पे
किस्सा-ए-गम ये सुनाऊँ कहाँ तक।
वानी अग्रवाल
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