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नारी और महीने के वो पाँच दिन। आज मुझ पर बीती तो समझ आया है। आज फिर से महीना आया है। कमजोरी,घुटन,और मन चीड़-चिड़ा सा है लगता है फिर से महीने का पहला तारीख सा है। फिर से अम्मा ने बिस्तर और खाने को अलग लगाया है और मैं भी गीता,कुरान और धर्मिक चीज़ो से कुछ दिनों के लिए जगह ले-ली हूँ। श्रृंगार को भी अभी कुछ दिनों के लिए छुटी दे-दी हूँ। आज फिर से दर्द हुआ है। लगता है महीने का असर हुआ है। दादी जी ने अब तो दर्दो को सहने का मूल्य मत्र भी बता दी है। माँ ने मुझ को बाबा (पिता जी) से दूर रहने को सलाह दे-दी है। हाँ बस थोड़ी सी बदलाओ हुई है कपड़ो के जगह नैपकिन्स ने ले-लिए है। मगर दर्द तो वही है ना उतना दर्द नही देता है यह माह के कुछ दिन मगर हरकतों सुई सा चुभता है। अगली जन्म मौको बिटिया ना दिजो बस यही आख़िरी सास भी कहता है।
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