नौकरी से लौटी महिला आज थोड़ी उद्विग्न थी
बॉस से बेवजह डांट से थोड़ी परेशान थी।
हर बार भड़ककर जवाब देने की इच्छा दबा लेती हैं।
वो औरत हर बार संस्कारो की वजह से चुप्पी लगा लेती हैं 

क्यों दोयम दर्जे की मानी जाती हैं महिलाएं हमेशा।
पुरुषों से कमतर आँकी जाती हैं  उच्च शिक्षित होकर भी हमेशा
कोमल बदन कोमल स्वभाव क्यों कमजोर व्यक्तित्व बना जाता
संवेदनशील बनना क्यों इमोशनल फूल की पँक्ति में बिठा देता।

थकी हारी लौटी जब घर सास की उम्मीदों  को पूरा करने  जुट जाती।
पति के लिए सर्दी के लड्डू,बच्चों के लिए गाजर का हलवा
बूढो के लिए मेथी के लड्डू।
बनाने की उम्मीदें।
पूरी करती घर भर की ख्वाहिशें,फरमाइशें।
और उसके लिए लिए क्या खास,,,??
कुछ भी नहीं,, यहीं तो स्त्री ही स्त्री की दुश्मन बन बैठी।

कमाऊ बहु के लिए कुछ भी विशेष खुराक नहीं ,,क्यू
उसे जरूरत ही कँहा हैं जब सास और माँ ने भी कभी खाये नहीँ।
मगर अब सोच बदलो तुम औरतों,,खुद की खुराक भी मांगों।
क्योंकि वह भी मर्द के साथ कमाती हैं।
घर भी सम्भालती हैं,, बच्चों और सास ससुर की सेवा भी
एक साथ कई मोर्चे निभाती,,ताउम्र
क्यों पोषक तत्वों की,विशेष खुराक की परंपरा नहीं औरत के लिए
रोजमर्रे के बेशुमार काम करते करते क्या उसे पोषण नहीं चाहिए।
घर भर की पसंदीदा भोजन बनाने वाली,,अपनी पसंद,,
क्यों नहीं बनती
भूल जाती,,नहीं दरकिनार ही कर देती अपनी पसंद,,क्यों
उसकी इच्छाओं की पूर्ति भी जरूरी है
इसी जन्म में ,युवावस्था में ,,अरमानों को पूरा करना हैं
इसी जन्म में,,तो फिर इंतजार किसका,,
चलो स्त्री तुम भी अपने लिए कुछ पौष्टिक सा बनाओ
बिना माँ और सास की तरफदारी या हिमायत किये बगैर
हक से बनाओ ,खाओ,,खिलाओ
पूरे करो अपने हर वांछित अरमान

वरना, अनकही बेबसी लील लेगी 
मन की खुशी को,,सुकून को
त्याग ही जीवन है पर इच्छाओं की पूर्ति  भी तो आवश्यक हैं।
कौन पूरा करने का बीड़ा उठाएगा,,
खुद को ही अपना ख्याल रखना हैं।
दूध ,फल और मेवे खुद भी खाने हैं,, बदलनी हैं यह पुरानी सोच
कि भला मुझे क्या जरूरत हैं
मैं तो कुछ भी खा कर जी लूँगी,,
ऒर ऐसी ही सोच वाली औरते,,
जब खुद ही कुछ नही खा पी और पहन ओढ़ नहीं पाती पसंदीदा
घूम फिर नहीं पाती मन भर
दफन  कर डालती अरमानों को बेवजह ,,फर्ज की सूली पर
ऐसी ही कुंठा ग्रस्त औरते,,फिर,
बहुओं और बेटियों को भी अक्सर
उसी सूली पर चढ़ाना चाहती हैं,, क्यों
आज की कामकाजी महिलाएं ,,क्यों स्वीकार करे
पुराने गढ़े गए दकियानूस प्रतिमान
उठो,,जागों,, विवेकशील बनो आधुनिक महिलाओं,,
जिम्मेदारी के साथ अपने हक का,अरमानों का भी ख्याल रखो
मत कुचलो अपनी छोटी मोटी ख्वाहिश को
क्योंकि,,जिंदगी मिलेगी न दोबारा
तो नई शुरुआत करो,,नए वर्ष से ही
घर और नौकरी की जिम्मेदारी जरूर पूरी करो
मैं के भीतर छुपी मैं को पर मत नजर अंदाज करो।
कोई तमगा नहीं होगा हासिल
खुद का सम्मान ख़ुद ही करो
खुद की इच्छाओं को पूर्ण करने की मुहिम जगाओ
तब ही मन और जीवन,,घर और समाज,,तरक्की कर पायेगा
सही अर्थों में,,तो ,,देर किस बात की,,
फेरहिस्त में टूटे सपनों की लड़ियों को सँजो लो
मनचाहा मनचीता कुछ कर लो,,
नारी होने को सज़ा मत समझो,,बस कुछ पल ,कुछ लम्हे चुरा लो
अपने लिए,अरमानों को पूरा करने के लिए
बहु और बेटी को सिखाओ
कर्तव्य पालन के साथ साथ खुद के अरमानों का भी पालन
तब स्त्री ही स्त्री की दुशमन नहीं बनेगी।
यकीनन ये पुरुष समाज तब स्वयम ही इज्जत करेगा तुम्हारी,,
जब,,तुम खुद इज्जत करोगी खुद की,,तो,,
देर किस बात की,, छू लो आसमान,,ख्वाबों की बुलन्दी का
बेहिचक,बेपरवाह,और बना लो जीवन,,
ख़ुशगवार,, आत्मनिर्भर।
स्वरचित।
Neelam Vyas

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