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लहजा गर अच्छा हो सूरत भा ही जाती है धीरे धीरे यार नज़ाकत आ ही जाती है। दोस्त कहाँ सच्चे मिलते है . . . दिल से निभाई जाती है जब ये मोहब्बत तो खुद ब खुद उसमें भी इबादत आ ही जाती है।
कितना ही कोई झूठ संभाले आखिर इक दिन तो झूठ रौंद कर यार हकीकत आ ही जाती है। समझते थे जिसे अपना . . . मुझको सिखाया गया प्यार का सबक मगर सुनलो नफरत का हो शहर बगावत आ ही जाती है।
घर में बुजुर्गों का साया खुदा की दौलत होती है बिछड़ते हैं जब रिश्ते अहमियत आ ही जाती है। एक विडम्बना ही है . . . बेपरवाही भली नही हर हाल में खतरा है वानी आफत में हो जान हिफाजत आ ही जाती है।
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