होती नहीं इज्जत जिनसे मां-बाप की,
खुद की औलाद से तो उम्मीदें वफ़ा न रख।

जन्नत तो खो दी तूने मां को रुला के,
रूठ गए जो जमी के ख़ुदा, तो ख़ुदा से वास्ता न रख।
इबादत में असर पैदा करो . . .
मुमकिन नहीं कीमत उनके आंसू की अदा हो,
जर्रा है तू दुनियां में कोई रुतबा न रख।

माना तु अमीरे शहर है कुछ नहीं मगर है,
गैरत मर गई तेरी, दिखावे का कोई ओहदा न रख।
नहीं पेट भरता महज . . .
मुफलिसी में भी खुश हुं अपने मां बाप के साथ,
जो लोग हैं बेकद्र, ऐसे लोगों से तू वास्ता न रख।

जमी पे क्यों न हो सैलाब, कहकशाली का आलम अब,
सरेआम कर दे जलील बेकद्रो को, जरा भी हया न रख।
महिखाने सी भरी हुई है . . .
दुनियां में मयस्सर है, मुझको तमाम खुशियां मगर,
शाहरुख़ बैठ के मस्ज़िदों में झूठा सज्जदा न रख।

Shahrukh Moin

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