इक दिया हर दिल में शामिल सैकड़ों ले काम  पर
मां जलाती जो दिया कुल के है वो नाम पर,

एक सधवा है जलाती प्यार के सौभाग्य पर,
जब कुंवारी देखती सांचे में खुद को है किसी

तब जलाती इक दिया वो ख्वाब के उस नाम पर
जल रहा देहरी पे मेरी है दिया पथ के लिये

भूल जाये रास्ता न कहीं कोई पथिक
एक दिया उन्के लिये जो मिटे इस देश पर

इक दिया उनके लिये जो जले दिन रात पर
इक दिया माटी तुम्हारे नाम का भी मैं जलाऊँ

इक विधाता के लिये मन्दिर के आगे मैं सजाऊँ
इक दिया कुटिया में उसकी जिसने इतना तप किया

अन्न पैदा तो किया पर दान हमको कर दिया
इक दिया उस भूख का जिसने दिखाये रंग इतने

अस्मिता लुटती कहीं पर टूटते सपने सलोने
इक दिया उस अस्मिता के नाम पर भी जले

होगी वो बेबस न जाने कितनी ये सोचो कभी
जिस्म जिसका नोचते दुनिया के ठेकेदार भी

इक दिया उसके भी आंगन में जला बेमन मगर
चीर देता पल में हो कितना अन्धेरा भी सघन।

इक दिया उम्मीद का जिसकी नही सीमा कोई
इक दिया उस हौसले का जिसकी हर सुबहा नई ।

इक दिया आभार का जिसने दिया है जन्म हमको
इक दिया उस कण्ठ का जिसने दिये हैं शब्द हमको।

Vani Agarwal

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