हर किसी के जहन में तुम्हारा मुकद्दर नही होता
दरिया का लहर सब समंदर नही होता

होती है अब  तो  हर रोज सभाएं
अब उसके यहां कोई स्वयंवर नही होता

आते हैं अब सब सच्ची-झूठी उलझने लेकर
   ऐसे अब यहां कोई पैगम्बर नही होता

बिकने लगे हैं अब तो नकली रंगों के गुलाब
बाज़ारों में अब हर फूल मुसब्बर नही होता

ये मौसम हैं अब सब रंग बदलते रहते हैं
ठंडी-ठंडी ओसों वाली सब दिसंबर नही होता

दुश्मन भी अब चोरी चुपके आते हैं मेरे घर
अरे-ये, वो अब कोई बिता सिकंदर नही होता।।

Anand Arya

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk