लफ़्ज़ तो कमबख़्त हल्के हैं
मगर ख़ामोशियाँ भारी है

फिर भी सबकुछ ठीक है
ये कहने की रस्म जारी है

आज खुलकर हँस लो यारो!
कल तो फिर जख़्म की बारी है

और उसको कैसे हराओगे
जो खुद से खुद को हारी है

शिक़ायत नहीं है ज़िंदगी से
बस मौत से ग़ज़ब की यारी है

औरों से कैसा शिकवा दोस्त!
गुस्ताख़ियाँ तो अपनों की सारी है

मत बना अपनी ख़्वाहिश उसको
क्यूंकि खुद वो ख़्वाहिशों की मारी है

ढ़ाह लो सारे सितम उसपर
सह लेगी क्योंकि वह 'नारी' है

Simran Raj

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