नोट-: इस कहानी में किसी भी विशेष जाति के और धर्म के लोगों को निशाना नहीं बनाया गया है, अपितु जाति व्यवस्था छुआ-छूत को बताया गया है,कि कैसे एक बच्चो के साथ जाति भेदभाव होता है और कहीं कहीं पर बहुत ज्यादा जाति भेदभाव होता है अन्य लोगों के साथ।
और इस कहानी में भी यही स्थिति को दिखाया गया है, और इसका परिणाम दिखाया गया है कि इस जाति व्यवस्था ने कई परिवारों को उजाड़ दिया।
इस कहानी से अगर किसी की भावनाये आहत होती हैं तो इस पर मै क्षमा प्रार्थी हूं।
मैं आशा करता हूं कि आप पूरी कहानी को पढ़ोगे
एक दुःखी बच्चे की कहानी - 4
दिव्य पहले ही दोस्तों से मिल न पाने के कारण दुखी था,
अब उन परिवारों को सजा पाने तथा वैद्यराज के परिवार के चले जाने से वह पूरी बिखर गया ,
अब वह शांत बैठा रहता ,न किसी से बोलता और न किसी को देखता बस घर में शांत दुखी बैठा रहता ।
कुछ दिन बाद-
वो तीन परिवारों में जिनको सज़ा हुई थी , भुखमरी के कगार पर पहुंच गए और धीरे धीरे सभी बच्चों ने दम तोड दिया,जो बचे वो गांव छोड़कर चले गए।
उसके दोस्तो की मौतों ने दिव्य को एक और झटका दिया,जिससे वह एक भयंकर मानसिक बिमारी का शिकार हो गया,वह हर क्षण दुःख में रहता और आंखों में आसूं रहने लगे,उसकी आवाज चली गई।
सरपंच जी ने जब उसकी हालत देखी तो वे घबरा गये,
और हर जगह की दवा करायी लेकिन दिव्य के सेहत मे कोई सुधार नहीं हुआ।
सरपंच जी हताश हो गये,
और वे समझ गए कि उन बच्चों की मौत से इसे सदमा लगा है,
उनको अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था,वो रो रहे थे क्योंकि उनका एक ही बेटा था, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी,अब पछताने से कोई लाभ न होता। लेकिन सरपंच जी ने इस घटना से बहुत सी चीजें सीखी होंगी।
सरपंच जी का बेटा जिंदा तो था लेकिन वह रहकर भी नहीं रहा।
कुछ साल बाद वहां अकाल पड़ गया , जिससे धीरे धीरे लोग जाने लगें,
इसी तरह गुलशनपुर वीरान होता चला गया,बस अब कुछ गिने चुने ही घर शेष थे,
इस तरह जाति भेदभाव ने बच्चों के बचपन की और बच्चों की हत्या कर दी,
और पूरे गांव को निगल गई।
इसलिए जाति बंधन को
तोडकर, हमें एक होना है,
जहां मनुष्य ही हमारी जाति हो और सत्कर्म ही हमारी पहचान बने,सबको एक होकर भारत को विश्व गुरु बनाना है।।
इस कहानी से आपको बहुत सारी शिक्षाये मिली होगी।
आशा करता हूं कि आप इसे शेयर करोगे और कहानी को जन जन तक पहुचाओगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें