लज्जा केवल नारी के ही
हिस्से में क्यूँकर आईं है
पुरुष की आंखे गिद्ध के जैसी
नारी पर ललचाई हैं
क्या पौरुष के अहम के खातिर
नारी लज्जा को पाई है।


ये तो नाइंसाफी है
ये ठीक नही बदमाशी है
लज्जा को तो पुरुषों को भी
धारण करना होगा अब
नीति वचन सुविचारों का
पालन करना होगा अब
आंखों में पर स्त्री के
लिए सजानी होगी श्रद्धा
लज्जित होना होगा भी
कुकर्मों के लिए तो वरना।



वानी में भी लज्जा है जो
प्रेम दया स्वभाव मिला है
संस्कार तो मिले हमें पर
सबको ध्यान ये रखना होगा
लज्जा केवल नारी की नही
सबको लज्जा में रहना होगा।
समाजिक बन गये मगर हम
अब तक जान नही पाये
लज्जित है खुद के कृत्यों से
जिनको भाप नही पाये।


इक स्त्री की मर्यादा को
पहले खंडित कर चूर किया
संतान दिया सम्मान दिया
फ़िर भी उसको ही दूर किया।

:वानी अग्रवाल

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