Read A Poetry - We are Multilingual Publishing Website, Currently Publishing in Sanskrit, Hindi, English, Gujarati, Bengali, Malayalam, Marathi, Tamil, Telugu, Urdu, Punjabi and Counting . . .
याद आ रहा है, वह बचपना। जब हम देख रहे थे, बड़े होने का सपना। अब जब बड़े हुए हैं हम, फिर याद आ रहा है वह बचपना।
वो भी क्या दिन थे, जब हम माटी में खेला करते थे, उसी माटी को सीने से लगा, जैसे स्वर्ग मिला हो, मन में बोला करते थे। पढ़े - प्रेम-विरह . . . बचपन मे बाबू के संग, खेतों में जाया करते थे। देख -देख मन हर्षित होता, बाबू अनाज उगाया करते थे।
वहीं खेत में बाबू के संग , खाना खाया करते थे। वहीं निकट एक कूप से, पानी लाया करते थे। पढ़े - ये शहर, मुझे राश नहीं आया . . . उस खान-पान से मन हमारा, तृप्त हो जाया करता था। कूप निकट एक वृक्ष के नीचे आराम फरमाया करते थे। बाबू के साथ खेत में, बहुत अच्छा लगा समय बिताना।
याद आ रहा है वह बचपना जब हम देखा करते थे , बड़े होने का सपना । अब हम बड़े हुए हैं तो, याद आ रहा है वह बचपना। पढ़े - सुना है गैर के वो प्रेम में, बर्बाद रहता है . . . बचपन में होली के त्योहारों में , बाबू से जिद कर जाते थे, नहीं -नही कहते थे , फिर भी पिचकारी हमे दिलाते थे।
जब आती थी दीवाली , सब संग- संग दीप जलाते थे। कभी पटाखे मांग लो मां से, बचपना कह जल जाने का खतरा हमें बताती थी। पढ़े - हे भारत के भाग्य विधाता . . . थोड़ी देर रोने के बाद, मां दुकान से फुलझरिया लाती थी, फिर हम उन फुलझरियो को धीरे धीरे जलाते थे, उस बचपन की सच्ची खुशी को, एक बार फिर से है लिखना।
याद आ रहा है, वह बचपना, जब हम देखा करते थे, बड़े होने का सपना। अब हम बड़े हुए हैं तो , याद आ रहा है , वह बचपना।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें