एक मुखौटा सामने दिखता
कितने अन्दर दबे हुये हैं
जीवन की सच्चाई यही है
सबमें चेहरे छुपे हुये हैं।

हर रिश्ते के माने दो हैं
एक सही बेमाने जो हैं
आदत ही अब सबको लग गई
एक मुखौटे पे उम्र ये कट गई ।
पढ़े - दोस्त कहाँ सच्चे मिलते है . . .
आज समझ न आता है
सच भी कहाँ दिख पाता है
झूठे वादे झूठे नाते
हर बात जहां पर झूठी है

एक बचा बस मां का रिश्ता
जिसमें खोट नही आई है
वैसे तो कलयुग नें अपनी
सब पर छाप लगाई है।
पढ़े - एक मां की पीड़ा . . .
बहुत दूर अब जा न सकेंगे
रिश्ते और निभा न सकेंगे
इतने सारे ओढ़ मुखौटे
कैसे तुमको पा हम सकेंगे।

कोई सूरत ऐसी भी हो
जिसमें मूरत रब जैसी हो
कोई रंग न हो जिसपर
जिसपर सिर्फ मोहब्बत हो
पढ़े - समझते थे जिसे अपना . . .
दिल से जिसकी इज्जत हो
दिल में उसे बसा ले फ़िर
प्यार के नग्में गा ले फ़िर।
वानी प्रीत के रस से भीगे
वचनों में मधुराग रहे।


Vani Agarwal

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