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बहुत है गम कब उसके अख्तियार मैं आता हूं , अनमोल हीरा हूं कभी-कभी बाजार में आता हूं। पढ़े - इबादत में असर पैदा करो . . . शोहरत की बुलंदी में लगे हैं अब बहुत, झूठी खबरों के साथ कभी-कभी अखबार में आता हूं।
अब तो हर बात जुबा पे करीबी ही आती है, जहन से माजुर अमीरों के जब दरबार में आता हूं। पढ़े - प्यार में . . . दुखों से गरीबों के भी मुश्किलें आती है जमी पर, अश्क नहीं थकते जब गरीबों के दयार में आता हूं।
चर्चों के बाजार में झूठी शोहरत वालें हैं अब, अब के माहौल में लगता है मंचों पर मैं बेकार में आता हूं। पढ़े - महिखाने सी भरी हुई है . . . मैं तमाम दर्द सह लूंगा मगर बुजुर्गों की रजा से, अंधेरी रात का जुगनू हूं कभी-कभी तेरे द्वार में आता हूं।
फूलों से मोहब्बत करने वाले जरा संभलना तुम, नाजुक जिस्म है मेरा फिर भी कांटो के अख्तियारयार में आता हूं। पढ़े - नहीं पेट भरता महज . . . उछाली है उन्होंने जाने कितनी पगड़िया शाहरुख़, फिर भी मैं उसके शहर के दस्तार में आता हूं।
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