अधजल गगरी जैसे हैं खुद को सागर समझ रहे हैं
अन्धों में काने राजा पर देखो माहिर समझ रहे हैं।
पढ़े - दोस्त कहाँ सच्चे मिलते है . . .
बूंद बूंद सबसे लेकर जो भर लाये हैं गागर अपनी
 बन बैठे है देखो रचैया खुद को शायर समझ रहे हैं।

उम्र बीता दी इधर उधर की कान भरे दिन रात मगर
जो रस्ते की धूल भी न हैं सबको कांकर समझ रहे हैं।
पढ़े - समझते थे जिसे अपना . . .
स्वयं मिले सम्मान हमेशा देना एक किसी को भी न
हिम्मत हैं तो करो सामना हमको कायर समझ रहे हैं।

Vani Agarwal

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