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कोई कहे हिंदू,कोई मुसलमान कहते हैं, तुम क्या हो ये तुम्हारे ईमान कहते हैं ।
एहतराम करो बुजुर्गों का अपने तुम, यही तो पुरुषोत्तम या रहमान कहते हैं। इबादत में असर पैदा करो . . . सबका मालिक एक वो समझे जाने हैं, ग्रंथों के यही श्लोक ब्यान कहते हैं।
वो शख़्स कबीर जो इंसान को माने हैं, मुल्क के जर्रे जर्रे ये दास्तान कहते हैं। नहीं पेट भरता महज . . . सारे जहां से अच्छा वन्दे मातरम् भी तो, चटर्जी, टैगोर, इकबाल, रसखान कहते हैं।
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