तड़पता है ये दिल और आँख अक्सर डबडबाई है
जिन्हें हम याद करते हैं उन्हीं से क्यों जुदाई है

मुहब्बत पड़ गई मँहगी वफ़ा करना पड़ा भारी
वो खुश हैं अपनी दुनिया में हमीं पर गाज आई है

उसे आख़िर कहाँ तक हम दिखावे की खुशी देंगे
कि हमसे दूर रहने की क़सम जब उसने खाई है

वो उनका प्यार था नक़ली फ़क़त कोरा दिखावा था
हुई है चूक उसकी ही सज़ा अब हमने पाई है

हम उनकी बेवफाई का गिला करते भी क्या ‘ममता’
मुहब्बत हमने ही की थी सो हमने ही निभाई है

Mamta Singh


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