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कई वर्ष बीत गये हैं लेकिन
अब तक लौट कर नही आया
वो बेटा जो कहीं चला गया था
कई वर्ष बीत गये हैं लेकिन
पढ़े - दोस्त कहाँ सच्चे मिलते है . . .
आज भी उसकी पसंद की चीजे
मां कभी  नही खाती है।
रोने लगती है उसको याद करके
याद करने लगती है वो दिन

जब हर तकलीफ से बचा लेती थी
किन्तु आज स्वयं को बेबस पाती है
लाचार है उसे ढूंढ पाने में
रोज ही गला दबाती है अपनी उम्मीदों का,
पढ़े - दोस्त कहाँ सच्चे मिलते है . . .
कहते हैं बेटी सखी जैसी होती है
लेकिन दो वर्ष बीत गये हैं ब्याह को
दो ही बार मिल पाई है अपनी सखी से,
क्योकी उसे घर न आने की हिदायत है

प्रेम विवाह किया था घर की मर्जी के बिना
लेकिन दो वर्ष बीत गये हैं ब्याह को
बेटी ने भी एक बेटे को जन्म दिया है
तड़प जाती है एक मां की कोख
पढ़े - दोस्त कहाँ सच्चे मिलते है . . .
उसका क्या कुसूर है इन सब में
यही कि उसने अपनी बेटी का साथ दिया
और जीत गई उसकी ममता
उस पौरुष बल से जिसे पति कहते हैं

क्यूँ एक पिता नही समझ सका एक मां का दर्द
क्यूँ दोनो रोज अपनी उमीदों को तोड़ती हैं
कई वर्ष बीत गये हैं मां निरंतर सहती है
एक ही दर्द दिन में कई कई बार
पढ़े - दोस्त कहाँ सच्चे मिलते है . . .
एक बेटे का और एक बेटी का,
ये पीड़ा उस प्रसव पीड़ा से भी अधिक है
जो पीड़ा के बाद सुख में परिवर्तित हुई थी
किन्तु कई वर्ष बीत गये हैं ये पीड़ा आज भी
उतनी ही है अधिक पीड़ादाई ।


Vani agarwal

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