तुम अपने प्रेम को मुझमें,
अविरल कर दो।
तुम अपने अश्कों से मुझे,
निर्मल कर दो।
बह जाऊ तेरे प्रेम की सरिता में,
तुम अपने सरिता का मुझे जल कर दो।
याद आ रहा है ,वह बचपना . . .
वो भी क्या रात थी?
उम्मीद न थी कभी तुमसे मिलेगें,
मिलते ही लगा, तुममे कुछ बात थी।
हम दोनों के मिलाने को आतुर,
सारी कायनात थी।
जब हम दोनों जब मिले,

तुम्हारा रूप जैसे भोर में सुमन खिले,
रागनी के छाओ में,
चन्द्र की चांदनी भी हमारे साथ थी।
अरे !वो भी क्या रात थी?
तुम्हारे हुस्न के सामने ,
चंद्र की चांदनी भी फीकी हुई,
ये शहर, मुझे राश नहीं आया . . .
तुम्हारे अलंकार से दुनिया में ,
एक नयी रीति हुई।
रात बढ़ रही थी,
दोनों की आंखें,
प्रेम पढ़ रही थी,
मुझे आभास हो रहा था,

तुम्हारी सांसें बढ़ रही थीं।
शायद, हम दोनों पहली बार मिले थे,
मुझे तुमसे बहुत गिले थे।
बस कहना तुमसे इतना था,
तुम पहले क्यो न मिले थे?
अब जो तुम्हारा दीदार हुआ,
सुना है गैर के वो प्रेम में, बर्बाद रहता है . . .
मुझे पहला -पहला प्यार हुआ,
तुमसे मिलके,
ये सौदा जन्मों के लिए,
करार हुआ।
ये पहला -पहला प्यार हुआ।


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