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नाराज़ थी मैं उस पल से, अपने आज से, तेरे कल से | तुझे सौ दफा मनाती, हसाती, तेरा चेहरा हाथों में लेके, तेरा दिल बहलाती, माखन में मिश्री, मिलाएं . . . फिर रूठ जाती, बालों की उलझ से, नाराज़ थी मैं उस पल से, अपने आज से, तेरे कल से | हम भले कितना ही मौसी और . . . तितलियों की कहानी सुनाती, मौत कैसे हुई उस पत्तंगे की, शमा की बेरहमी बताती | आंगन की मिट्टी रो रही थी, सिसक रही थी, सावन की बिछडन से | नाराज़ थी मैं, उस पल से, अपने आज से, तेरे कल से ||
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