नाराज़ थी मैं उस पल से, अपने आज से, तेरे कल से |
तुझे सौ दफा मनाती, हसाती, तेरा चेहरा हाथों में लेके, तेरा दिल बहलाती,
माखन में मिश्री, मिलाएं . . .
फिर रूठ जाती, बालों की उलझ से,
नाराज़ थी मैं उस पल से, अपने आज से, तेरे कल से |
हम भले कितना ही मौसी और . . .
तितलियों की कहानी सुनाती, मौत कैसे हुई उस पत्तंगे की, शमा की बेरहमी बताती |
आंगन की मिट्टी रो रही थी, सिसक रही थी, सावन की बिछडन से |
नाराज़ थी मैं, उस पल से, अपने आज से, तेरे कल से ||


Varsha Chaudhary

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