उलझी है जो रिश्तो की डोर,
उसे जरा सुलझाने तो दिजिये...
पढ़े - डाका पड़ा था कल रात घर मेरे . . .
रुठा है जो यार हमसे,
उन्हे जरा मनाने तो दिजिये...

मोहब्बत मे साथ जीने-मरने की,
एक रस्म हमे भी अदा करने दिजिये...
पढ़े - ऐसी भी क्या नाराज़गी . . .
उनके बिना थम चुकी है जिन्दगी मेरी,
जरा इस बात का ऐहसास उन्हे भी होने दिजिये...

इश्क अगर गुनाह है,
तो ये गुनाह हमे भी करने दिजिये...

 Shubham Poddar


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