नहीं है मुझे,
मुहोब्बत उससे,
लो आज सरेआम कहता हूँ।
पढ़े - एक कर्मनिष्ठ नेत्री को . . .
की नहीं है डर मुझे,
अब जुदाई का,
लो आज खुलेआम कहता हूँ।

टूट गए वो क़समें वादें,
जो कभी थे!
अब तो मैं भी अपने तरफ़ से
सभी वादों को तमाम कहता हूँ।
पढ़े - एक कर्मनिष्ठ नेत्री को . . .
उसने खुद की,
जो अलग दुनियां बसाई है!
नहीं रह सकता मैं,
उसकी दुनियां में,
हाथ जोड़कर उसे प्रणाम कहता हूँ।


Aditya

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