क्या लिखूं तेरे लिए मैं,
तुझ बिन अब कैसे जियूं मैं...
पढ़े - डाका पड़ा था कल रात घर मेरे . . .
सोचता हूँ एक फरियाद लिखूं मैं,
खुदा से कह कर एक ख्वाब लिखूं मैं,
उन ख्वाबो में तेरी खुशिओं की हर बात लिखूं मैं...

खुदा से लेकर के स्याही,
तेरी खुशियों का अल्फाज लिखूं मैं...
पढ़े - ऐसी भी क्या नाराज़गी . . .
उगते सूरज की किरणों से,
तेरे हर ख्वाब बुनू मैं...

तारो की गलियों से जाकर,
चाँद पे तेरा नाम लिखूं मैं...
पढ़े - क्या तुम इतने बत्तमीज हो जाओगे . . .
जब-जब तू कहे तो मैं,
अम्बर पे तेरी खुशियों का राग लिखूं मैं...

तेरी खुशियों की खातिर,
सूरज पे तेरी सौगात लिखूं मैं...
पढ़े - जुल्म क्यों सहती हो तुम . . .
बना रहे तुझपे ईश्वर का साया,
बस यही हर बार लिखूं मैं...


Shubham Poddra

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