Read A Poetry - We are Multilingual Publishing Website, Currently Publishing in Sanskrit, Hindi, English, Gujarati, Bengali, Malayalam, Marathi, Tamil, Telugu, Urdu, Punjabi and Counting . . .
कभी सिर पर पड़ा था यह, कभी तन पर अड़ा था यह बहते लहू को देख कर, सबसे पहले बढ़ा था यह फिर इससे ऐसा क्या गुनाह हो गया, दुपट्टा क्या खुद ही बेपनाह हो गया !
कभी उँगलियो से लिपटा, कभी दाँतो के बीच आया, तन को ढाँप कर इसने कभी मौसम से बचाया, फिर आज क्या ये बदनाम हो गया, कपड़े से दुपट्टा गुमनाम हो गया !
कभी चादर था यही, कभी आँचल बन गया, कई बार प्रेमियों का यह सांकल बन गया, फिर आज क्या ये बेकार हो गया, दुपट्टा से हर कोई बेज़ार हो गया !
कंधे से कभी यह जरा सा सरका, हाथ ने तुरंत इसे आ लपका, फिर आज क्या ऐसा अनर्थ हो गया परिधानों से दुपट्टा ही व्यर्थ हो गया !
कभी हवा में लहरा कर, कभी चेहरा छिपाकर कितने ख़्वाब में यह आया, अपने नखरे दिखा कर फिर आज कैसे ये किसका दखल हो गया, अपनी रियासत से यह दुपट्टा बेदखल हो गया !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें